"नौशाद – नौशाद चालीस करोड में सिर्फ एक ही नौशाद "यह घोषवाक्य 1950 की फिल्म 'दिल्लगी 'के ट्रेलर का था,(उस दौर में भारत की ...
"नौशाद – नौशाद चालीस करोड में सिर्फ एक ही नौशाद "यह घोषवाक्य 1950 की फिल्म 'दिल्लगी 'के ट्रेलर का था,(उस दौर में भारत की आबादी सिर्फ चालीस करोड़ थी ),और आज भी पुरे भारत में सिर्फ एक ही नौशाद है, थे और रहेंगे, हिंदी सिनेजगत के महान संगीतकार मरहूम जनाब नौशाद वाहिद अली उर्फ नौशादजीं की ये अजर - अमर दास्तान है ।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनौ स्थित अदालत के मुन्शी रहे वाहिद अली के मझहबी घर में 25 दिसम्बर 1919 को इस "संगीत प्रभू येशू "का जन्म हुवा
जिनके शरीर में खून नही बल्की संगीत की लेहेरे दौडती थी, लखनौ के लटूश मार्ग पर उन्हे पाठशाला में भर्ती तो जरूर किया था लेकिन हुजूर बगल में रही साजों के दुकान में कुछ जादा ही झाँकते थे और रॉयल टॉकीज (आज का मेहेरा टॉकीज )में चलते निर्वाक चलचित्र और उसको संगीत संगत देता उस्ताद नवाब लड्डनजी के ऑर्केस्ट्रा में बजते साजोंको दिलोजान से निहारते थे ,ऐसे ही एक साजोंके दुकान के मालिक मिया गुरबत अली जीने उन्हे दुकान में काम करनेका मौका दिया, अपनी तकदीर पर खुश नौशाद एक रोज नए हार्मोनियम पर निजी धुन बनाते पकडे गए, दिलदार, और सच्चे कला के पुजारी मालिक ने उन्हे वही हार्मोनियम तोहफे में दे दिया, अब यहा नौशाद जी बेहद खुश तो वहाँ उनके वालिद साहब नाखुश, पढाई -लिखाई -पाठशाला सब,सब को त्यागकर नापाक संगीत में ही दिनरात मशगुल रहने से हर रोज बाप -बेटे में तू -तू -मै -मै होना तो जायज ही था और एक दिन पिता ने उस हार्मोनियम को खीच के घर के बाहर पटक दिया, साथ ही बेटे को सवाल किया कि वो इस नापाक संगीत को त्याग के घर में रहे या घर का त्याग करे, नौशादजी ने अपने टुटे -फुटे हार्मोनियम तथा अपने उतने ही टूटे दिल -जजबात को संभालते हुए दुसरे पर्याय को चुनकर घर को खुदाहाफिज कहा
अपने एक संगीत मित्र मोहम्मद आदिल कि सिफारीश से मायानगरी मुंबई में कोलाबा स्थित डॉ. अब्दुल अली नामी साहबजिनके घर में सहारा तो मिला पर उनके पसंद का काम उन्हे मुंबई के हर एक स्टुडिओ में चक्कर पे चक्कर काटने के बाद भी नसीब न हुवा, इसमे उनके जुते फट गए तो ट्रेन में जेब कट गई फिर भी नंगे पैर -भूखे पेट ही सही पर हिम्मत नही हारी और एक दिन उन्हे 40रुपीया प्रति माह वेतन पर हार्मोनियम वादक की नौकरी मिली ।
उनके उस्ताद झंडे खान इस युवक के अथक परिश्रम, धुन -नोटेशन शीघ्र बनाने की कला पर काफी प्रसन्न थे,उनके द्वारा पुरजोर सिफारीश की गई उस दौर के महान संगीतकार ज्ञानदत्तजींको,उन्ही के संगीत निर्देशन में एक चलचित्र ,'कंचन ' में सिर्फ एक ही भक्तीगीत को उन्हे संगीत बहाली का सुनहरा मौका प्राप्त हुवा और और नौशाद जी द्वारा संगीत दिया तथा सर्वप्रथम गीत का जन्म हुआ "कौन गली गयो श्याम " जिसे गाया था उस दौर की मशहूर अभिनेत्री एवं गायिका लीला चिटणीसजी नें जो दादर में शिवाजी सदन में रहती थी और नौशादजी उसी मंझिल में सीढी के निचले कमरे में रेहेते थे.
ग्रीष्म ऋतू में मुंबई की असहनीय गरम रातोमे अक्सर नौशादजी फुटपाथ पर सोते थे, यह दृश्य लीलाजीने कई बार देखा था, जिस वजह से वह उन्हे एक बेकार, आवारा इन्सान समझती थी, सहवादक और रणजीत स्टुडिओ की राजनीती से परेशान नौशाद नें नौकरी छोड दी फिर चालू हुई बेकारी , ऐसे में और एक नौशादजिनके गुण को परखकर चाहनेवाले दीनानाथ मधोक जो गीतकार, निर्माता, लेखक थे उनकी कडी सिफारीश से उन्ही के द्वारा लिखित फिल्म 'प्रेमनगर ' में संगीतकार के रूप में नौशाद जी को 1940 में सर्वप्रथम अवसर मिला और नौशादजी स्वतंत्र संगीतकार के रूप में प्रकट हुए आगे दर्शन, माला, नई दुनिया आदी चलचित्र को संगीत दिया किंतु नौशादजी के 'शारदा 'इस छठवी तथा 'स्टेशन मास्टर ' इस सातवी फिल्म नें कामयाबी का पहला पर्चम गाड दिया ये दोनो फिल्मे संगीत की वजह से सिल्वर ज्यूबली चली, किंतु, किंतु 'नौशाद ' ये नाम संपूर्ण भारत में आसेतू हिमाचल पहुचा 1944 के 'रतन 'द्वारा इस सिनेमा के बेहेतरीन गानों की वजह से रतन नें डायमंड ज्यूबली की, इस रतन के गानों का प्रभाव इतना था कि महान संगीतकार एस. डी. बर्मनजींका घरेलू नौकर रतन के गीत गुनगुनाते खुद दादाजीने सुना तब वे चौक गए थे तथा नौशाद और आलिया खान की शादी में बँड वाले भी रतन के ही सदाबहार गाने बजाते थे । किंतु मुसीबत ये थी कि नौशाद जी ने अपने घरवाले एव अपने ससुराल में ये बताया था की वे बंबई में दर्जी का काम करते है इस वजह से इतने अनुपम ,सदाबहार इस ' रतन ' के गीतोंके वही संगीतकार है यह हकीकत वे बया नहीं कर सकते थे ।
1940 उनके सर्वप्रथम चलचित्र 'प्रेमनगर 'से लेकर 2005 'ताजमहल -अँन -इटरनल लव्ह स्टोरी ' तक नौशादजी नें 74 फिल्मोनको अपना अनुपम संगीत दिया, इसमे 4 अप्रदर्शित,1 भोजपुरी,1 मल्यालम,1अंग्रेजी (हॉलिवूड के प्रति ) तथा 'मुगल -ए -आझम ','आन ' मल्यालम भाषा में डब किए गए ,उनकी 74फिल्मोमे सिल्वर जुबली फिल्मे - 23, गोल्डन जुबली फिल्मे - 7, और डायमंड जुबली 3 फिल्मे थी ।
इस अभूतपूर्व कामयाबी के पीछे नौशादजी के दो महा गुणी सहायक, जिनकी जितनी भी तारीफ करें उतनी कम ही होगी, ऐसे संगीतकार गुलाम मुहम्मद और संगीतकार मुहम्मद शफी इन महानुभावोंका काफी बडा योगदान था ।
संगीतकार नौशाद जी के संगीत में कई विशेषताए थी, सबसे एहम बात उनके हर एक गाने की बैठक भारतीय शास्त्रीय संगीत थी, ऐसा वैभव संप्पन शास्त्रीय संगीत जो 'दिवाने खास ' के बंधन में था, उसे उन्होने सरल गीतों के जरिए 'दिवाने आम 'अर्थात जनसामान्य रसिक श्रोता तक पहुचाया, विदेशी संगीत, धुन, साजो का प्रयोग उन्होने सिर्फ 'दास्तान 'और 'जादू ' इन दो ही फिल्मोन तक सीमित रखा, इंटर्ल्यूड म्युझिक, बॅक ग्राउंड म्युझिक, कोरस, लोकसंगीत आदि प्रकारों के तो वे बेताज बादशाह थे अपने संगीत में उन्होने अथाह प्रयास के बाद उस दौर के उल्लेखीत ऊ.आमिर खान, ऊ.बडे गुलाम अली खान, पं.कृष्णराव चोणकर, पं.दत्तात्रय विष्णू पलूस्कर, बेगम परवीन सुलताना, शोभा गुरटू जैसे मान्यवर संगीत तपस्वियोंको जोडकर एक अमीर इतिहास रचा, और एक तथ्य ये भी है कि नौशाद उन गिने चुने संगीतकारोमे एक ऐसे नसीबवाले संगीतकार है जिन्होने स्वरसम्राट स्व कुंदनलाल सैगल और मलिका -ए -तरन्नूम नूरजहाँ जैसे विश्व श्रेष्ठ गायकों कॊ गवाया, इतना तो उमदा नसीब अनिल विश्वास, सी. रामचंद्र,दादा बर्मन जैसे वरिष्ठ संगीतकारो के भी बस में नही था ।
नौशादजी एक संगीतकार तो थे ही साथ साथ वे अच्छे गायक, लेखक एवं निर्माता भी थे, फिल्म 'उडन खटोला ', पालकी ','मेला ' इन कामयाब फिल्मोनकी कहानी उन्होने ही लिखी थी,'उडन खटोला ' और 'बाबुल ' के सहनिर्माता वो ही थे,'आठवा सुर 'शीर्षक अंतर्गत उनके द्वारा लिखित शायरी की 'किताब का लोकार्पण लंडन में हुवा था और इसी शीर्षक के अंतर्गत गायक हरिहरन कॊ लेकर उन्होने अपने संगीत जीवन का सबसे आखरी अल्बम 1998 में पेश किया था.
उन्हे कसरत, शिकार और मछली पकडनेका शौक था, उनके जीवन पर आज तक छह लघु चित्रमालिका निर्माण हुए है, उन्हे कई फिल्म फेअर अवॉर्ड मिले है, मध्यप्रदेश शासन का बहू प्रतिष्ठित लता मंगेशकर अवॉर्ड के प्रथम मानकरी नौशादजी है, उन्हे भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण, प्रेसिडेंट संगीत अकादमी अवॉर्ड तथा सर्वोच्च दादासाहेब फाळके अवॉर्ड से नवाजा गया है, मेहेबूब भाई निर्देशीत उनकी एक सफल फिल्म 'मदर इंडिया 'विश्व विख्यात 'ऑस्कर अवॉर्ड' के लिए भी चुनी गई थी ।
दर्शन, माला, स्टेशन मास्टर जैसी फिल्मोनके निर्माता भट बंधू कॊ इस सिने उदयोग में इतना नुकसान हुआ था कि ये दोनो भाई अपने 'प्रकाश पिक्चर्स 'इस फिल्म निर्माण कंपनी कॊ फूककर भाग जाने की फिराक में थे उसी वक्त नौशादजी नें उन्हे हौसला देकर काफी मुश्किल से एक लो बजट फिल्म निर्मिती का आग्रह किया, उन्होने भी इस नसीहत कॊ मानकर एक कम लागत वाली फिल्म बनाई जो डायमंड जुबली सुपर डुपर हिट हुई, नौशादजी कॊ सर्वप्रथम 'फिल्मफेअर पुरस्कार ' इसी फिल्म के मकबूल गितों द्वारा प्राप्त हुआ और ये काफी कामयाब फिल्म रही जिस चलतचित्र का नाम था 'बैजूबावरा '
इस बैजूबावरा फिल्म फेयर पुरस्कार समारोह में नौशाद साहबजीने कहे वाक्य सुवर्ण अक्षरों में लिखना ही उचित है "इस मायानगरी मुंबई में मै मुश्किल से 17/18 साल के उम्र में घर से भाग के आया था, दिल में संगीत और आँखोमे सुनहरे ख्वाब सजाकर भूखा -प्यासा -नंगे पैर, दर -दर की ठोकरे खाता अपनी तकदीर कॊ आजमा रहा था, दादर के टुटी -फूटी शिवाजी सदन के सीढी के नीचे के एक काफी छोटे कमरे से मुश्किल से पचास कदम थे किंतु इस फुटपाथ से उस फुटपाथ तक पहुचने के लिए सत्रह साल लग गए,
(संदर्भ – दादर में आज जिस जगह पर बाबुभाई भवानजी शोरूम है उस स्थान पर ब्रॉडवे टॉकीज था और उसके ठीक सामनेवाली फुटपाथ पर शिवाजी सदन इमारत की सीढी के नीचे कमरे में नौशादजी किराये पर रहते थे तथा ब्रॉडवे टॉकीज में 'बैजूबावरा '25 हफतो के उपर चली थी.)
नौशाद साहबजी की एक डायमंड ज्यूबली फिल्म 'मुगल -ए -आजम ' की ढेर सारी विशेषता है उन्हीमे दो विशेषताए – 1960 में यह सिनेमा रिलीज हुआ,1960 तक पुर्वप्रदर्शन,संबंधित फिल्म के रिकॉर्ड मंडी में मिलते थे यह भारत की सर्वप्रथम फिल्म है जिसकी सहकहानी संवाद और गितोंके साथ एच. एम. व्हि. ने तीन रेकॉर्ड का संच प्रकाशित किया था.
दुसरी बात इस फिल्म का अजर अमर लताजी गीत सह कोरस "प्यार किया तो डरना क्या "इस रेकॉर्ड (उस दौर में 78 आर. पी. एम. रेकॉर्ड ही चलते थे ) इतनी नं भूतो नं भविष्यती बिक्री हुई की सभी के सभी रेकॉर्ड बाजार से खत्म हुवे, रसिक श्रोताओं की माँग तो हर दिन हर रात बढती ही जा रही थी, आपूर्ति के लिए मुल्क के सभी एच. एम. व्हि. डीलरो से जितना हो सका उतना कम बिक्री 78आर. पी. एम. रेकॉर्ड के लॉट मंगवाये गए, उन्हे तोडकर इस जनप्रिय गीत की रेकॉर्ड बाजार में लाई गई.
नौशादजी ने हमेशा नए संघर्ष करते उम्मीदवारो की हौसला आफजाई की है जैसे सुरैय्या, मुहम्मद रफी, उमादेवी उर्फ टुनटुन, हिंदी चलचित्र अभिनेता गोविंदा की माँ निर्मला अरुण अहुजा उर्फ निर्मला अरुण, शांती माथुर आदि
नौशादजी के सहायक तथा संगीतकार उस्ताद गुलाम मुहम्मदजी आखरी पेशकश 'पाकिजा 'का पार्श्वसंगीत, कुछ गीत आदि का कार्य उन्होने किया था.
एक खुलासा करना यहाँ जरुरी है की स्वर्णिम हिंदी सिनेसंगीत में नौशाद और नाशाद ऐसे दो संगीतकार थे, नाशाद अर्थात शौकत हैदरअली हाश्मी जो देश के विभाजन के पश्चात पाकिस्तान चले गए और स्वदेश भक्त नौशादजी ने अपनी अंतिम साँस आज ही की तारीख 05 मे 2006 कॊ बांद्रा, मुंबई, में अपनी विशाल कोठी "आशियाना "में ली और संगीत के अंबरका एक चमचमाता तेजस्वी सिताराका दुःखद अस्त हुवा
नौशादजी जुलेहा अर्थात बुनकर जाती के थे, बुनकर एक -एक धागे कॊ काफी हुनर से पकड-पकड कर विशाल वस्त्र का निर्माण करता है, ठीक उसी तरह से नौशादजीने एक - एक सुर -स्वर कॊ बुनकर विश्व के संमुख संगीतरुपी, अनमोल -अनुपम महावस्त्र, सुमधुर गीत रुपी कर्णप्रिय वस्त्र रखे है जो अजर है अमर है और रहेंगे, विश्व का कोई भी वस्त्र किसी ना किसी दिन फटकर नष्ट होकर वर्तमान से अतीत में चला जाता है किंतु यह चिरंतन संगीतवस्त्र अमर था -अमर है और सदा सदा के लिए अजर -अमर ही रहेगा
नौशाद साहब अमर रहे -अमर रहे -अमर रहे
लेखक - प्रशांत कर्वे, अंबरनाथ
9 7 6 9 1 3 5 9 7 1
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